गुजरात हाईकोर्ट का ’लवजिहाद’ कानून पर फैसला संवैधानिक जीत: यू0पी0 जमियत उलमा

गुजरात हाईकोर्ट का ’लवजिहाद’ कानून पर फैसला संवैधानिक जीत: यू0पी0 जमियत उलमा

 जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी के प्रयासों और तत्काल प्रतिक्रिया से गुजरात सरकार द्वारा 15 जुलाई को लागू धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2021 पर गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा अधिनियम की 8 धाराओं पर तत्काल प्रतिबंध लगा दिया है। इस संबंध में जमीयत उलमा उत्तर प्रदेश के पदाधिकारियों ने जमीयत उलमा के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी और गुजरात जमीयत उलेमा के पदाधिकारियों को धन्यवाद दिया और उन्हें इस उपलब्धि पर बधाई दी।

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उक्त अधिनियम के तहत गुजरात में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी के निर्देश पर गुजरात जमीयत उलेमा ने उनके खिलाफ गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड मोहम्मद ईसा हकीम और सीनियर एडवोकेट मेहर जोशी ने भारत के संविधान का हवाला देते हुए कोर्ट में दलीलें पेश कीं. पक्षकारों की दलीलें सुनने के बाद गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति वीरेन विष्णु की पीठ ने उक्त अधिनियम की धारा 3, 4, 4ए, 4बी, 4सी, 5, 6 और 6ए को तत्काल निरस्त कर दिया।

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अधिनियम की धारा 3 ऐसे किसी भी व्यक्ति द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन या सहायता और विवाह के लिए उकसाने का अपराधीकरण करती है। 3ए के तहत जबरन धर्म परिवर्तन की शिकायत माता-पिता, भाई-बहन या कोई रिश्तेदार या ससुराल वाले कर सकते हैं। 4ए में अवैध, धार्मिक धर्मांतरण के लिए 3 से 5 साल की जेल की सजा का प्रावधान है। धारा 4बी अवैध रूप से धर्म परिवर्तन कर शादी पर रोक लगाती है। धारा 4सी के तहत मुकदमा चलाया जाएगा। धारा 6ए आरोपी पर सबूत का बोझ डालती है।

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अधिनियम के इन बिंदुओं पर रोक लगाते हुए अदालत ने कहा कि यह वयस्क स्वतंत्रता के आधार पर अन्य धर्मों में विवाह पर लागू नहीं होगा। न्यायालय में एक वरिष्ठ वकील ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा मांग की कि उक्त कानून व्यक्तिगत स्वतंत्रता, स्वतंत्र विकल्प, धार्मिक स्वतंत्रता और संवैधानिक भेदभाव पर आधारित है। और यह संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 के विपरीत है। इसलिए इसे तत्काल हटाया जाए। मामले में अन्य बिंदुओं पर सुनवाई जारी रहेगी। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने भी गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि यह संविधान की सर्वोच्चता की मिसाल है, लोग इससे संतुष्ट हैं।

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