खालिस्तान ज़िंदाबाद के नारे स्वर्ण मंदिर में लगे, ऑपरेशन ब्लू स्टार की मनाई गयी बरसी

खालिस्तान ज़िंदाबाद के नारे स्वर्ण मंदिर में लगे, ऑपरेशन ब्लू स्टार की मनाई गयी बरसी

 

ऑपरेशन ब्लूस्टार की 37वीं बरसी पर स्वर्ण मंदिर में

अमृतसर (पंजाब) : रविवार को खालिस्तान ज़िंदाबाद के नारे स्वर्ण मंदिर में लगे, शिरोमणि अकाली दल (मान) के समर्थकों ने ऑपरेशन ब्लूस्टार की 37वीं बरसी पर स्वर्ण मंदिर में खालिस्तान समर्थक नारे लगाए, इस मौके पर बड़ी संख्या में युवाओं ने खालिस्तान जिंदाबाद का बैनर और तख्तियां लिए हुए थे.

इस घटना को 1984 के “घल्लूघरा” के रूप में वर्णित करते हुए, जत्थेदार अकाल तख्त ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने सिख समुदाय के बीच एकता बनाए रखने पर जोर दिया।

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अकाल तख्त पर अखंड पाठ का आरंभ

ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी को लेकर अमृतसर के अकाल तख्त पर अखंड पाठ का आरंभ हो चुका है। इसका भोग 6 जून को डाला गया। 6 जून ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारे गए लोगों की याद में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) भी अखंड पाठ का भोग डलवाती है।

इस दिन गरम दलिए भिंडरावाला की याद में रखे जाते हैं अखंड पाठ का भोग डालते हैं। यहां पर खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हैं। यह हर 6 जून को होता है। हर साल जहां पर एसजीपीसी टास्क फोर्स की गरम दलों के साथ बहसबाजी होती है और जहां तक कि कभी-कभी तलवारें भी चलती हैं।

5500 पुलिस वाले तैनात, सीसीटीवी से निगाह

पुलिस प्रशासन मुस्तैद है। बेरीकेडिंग की गई है। प्रयास है कि किसी को स्वर्ण मंदिर परिसर की ओर न जाने दिया जाए। हिन्दूवादी बरसी पर होने वाले कार्यक्रम का विरोध कर रहे हैं। इस कारण भी टकराव के आसार बन रहे हैं। इसे देखते हुए 5500 पुलिस वाले तैनात किए जा रहे हैं। सीसीटीवी से निगाह रखी जा रही है।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर को खालिस्तान समर्थकों से मुक्त कराने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार के आदेश दिए थे। ऑपरेशन ब्लू स्टार सेना का एक ऐसा ऑपरेशन था जिसने देश में सिख इतिहास व सिखी के सियासी मिजाज को भी बदल कर रखा दिया।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा

इस ऑपरेशन का खामियाजा भारत की ताकतवर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा। खालिस्तान का सपना देखने वाले लोग आज भी इस ऑपरेशन को भूले नहीं हैं। सेना की कार्रवाई के वो चार दिन लोगों के रोंगटे खड़े कर देते हैं।

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कुछ चश्मदीद उस घटना के बारे में तारीख दर तारीख बताते हैं। वे और उनके जैसे कई लोग सेना की कार्रवाई और वहां मौजूद खालिस्तानी समर्थकों के जवाबी हमले का गवाह बने।

परिसर में मौजूद थे प्रत्यक्षदर्शी

उस समय दरबार साहब परिसर में मौजूद थे प्रत्यक्षदर्शी मनजीत सिंह भोमा। वे इस समय एसजीपीसी के सदस्य भी हैं। उन्होंने बताया कि पांच जून को स्वर्ण मंदिर के आसपास तैनात केंद्रीय रिजर्व फोर्स के जवानों से शिरोमणि गुरुद्वारा परबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के कुछ सेवादारों की परिसर के अंदर जाने को लेकर झड़प हुई थी।

इसके बाद तनाव काफी बढ़ गया था। पूरा दिन सेवादारों और अर्धसैनिक बलों के बीच तना-तनी चलती रही। शाम तक पूरे इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया था। पैरा-मिलिट्री फोर्स ने हालात काबू में रखने के लिए फ्लैग मार्च भी किया था। मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होने लगी थी।

सेना स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराना चाहती थी

5 जून को गुरु अर्जुन देव का शहीदी दिवस मनाया जाना था। लेकिन सेना स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराना चाहती थी। इसके लिए व्यापक योजना पर काम शुरू हो चुका था। मंदिर परिसर में श्रृद्धालुओं समेत तकरीबन पांच हजार लोग जमा हो चुके थे। भाई अमरीक सिंह कीर्तन कर रहे थे।

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सुबह लगभग चार बजे अकाल तख़्त के पास सिंधियों की धर्मशाला पर बम से हमला किया गया। वहां मौजूद श्रद्धालु सहम गए। अफरा-तफरी के बीच लोग बाहर निकलने लगे। शाम होते-होते दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं। परिसर में सिख लड़ाकों ने मोर्चाबंदी कर ली थी।

उस वक्त मंदिर परिसर के साथ कई इमारतें जुड़ी हुई थीं और आसपास के सभी मकानों पर सेना के जवान तैनात थे। मकानों की छतों पर मशीनगनें लगाई गई थीं।

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